आओ जल्दी करो आगे बढ़ते चलो !
छोड़कर वक्त आगे निकल जाएगा !!
कल पे टालोगे तो आज-कर करते ही !
हाथ से ये मौका भी फिसल जाएगा !!
है अभी खेलने और खाने का दिन !
है जवानी तो है लुफ्त उठाने के दिन !!
जब ढलेगा बदन तब करेगे भजन !
इस भरम में ही आएगा जाने के दिन !!
शक्ति ही जब निकल होगी तो क्या भक्ति हो !
जब बुढापे में योवन बदल जाएगा !!
चिडिया चुग जायेगी उमर की खेतिया !
Saturday, December 13, 2008
Monday, November 24, 2008
हे प्रभु ! दुर्गुणों को दूर करे
हे प्रभु ! आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये !
शीध्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये !!
लीजिये हमको शरण में हम सदाचारी बने !
ब्रम्हचारी धर्मरक्छक वीर ब्रतधारी बने !!
निंदा किसीकी हम किसी से भूलकर भी न करे !
इर्ष्या किसीकी हम किसी से भूलकर भी न करे !!
सत्य बोले झूठ त्यागे मेल आपस में करे !
दिब्य जीव हो हमर यश तेरा गाया करे !!
जाए हमारी आयु हा प्रभु लोक के उपकार में !
हाथ डाले हम कभी न भूलकर अपकार में !!
मातृभूमि मातृसेवा हो अधिक प्यारी हमें !
देश में सेवा मिले देश निज देश हितकारी बने !!
कीजिये हम पर कृपा ऐसी हे परमात्मा !
मोह मद मत्सर रहित होवे हमारी आत्मा !!
हे प्रभु ! आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये !
शीध्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये !!
शीध्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये !!
लीजिये हमको शरण में हम सदाचारी बने !
ब्रम्हचारी धर्मरक्छक वीर ब्रतधारी बने !!
निंदा किसीकी हम किसी से भूलकर भी न करे !
इर्ष्या किसीकी हम किसी से भूलकर भी न करे !!
सत्य बोले झूठ त्यागे मेल आपस में करे !
दिब्य जीव हो हमर यश तेरा गाया करे !!
जाए हमारी आयु हा प्रभु लोक के उपकार में !
हाथ डाले हम कभी न भूलकर अपकार में !!
मातृभूमि मातृसेवा हो अधिक प्यारी हमें !
देश में सेवा मिले देश निज देश हितकारी बने !!
कीजिये हम पर कृपा ऐसी हे परमात्मा !
मोह मद मत्सर रहित होवे हमारी आत्मा !!
हे प्रभु ! आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये !
शीध्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये !!
Saturday, November 22, 2008
मानव जीवन कैसा हो
जिंदगी अपनी न खाने-खेलने में ही गंवाओ ! कटुवचन, परदोषदर्शन वृत्तिया मन में न लाओ !! देह मानुष की बड़े भाग्य से हमको मिली है ! जन्म सेवा को मिला है मत किसी का दिल दुखाओ !! आप जो बोते हो उसी को काटते समझो इसे ! इसलिए जितना बने उपकार करना चाहिए !! चाहते जो आपका सत्कार होना चाहिए ! तो आपके विस्वास का विस्तार होना चाहिए !! चाहते ब्यवहार जैसा दुसरे से आप है ! आपका पहले वही ब्यवहार होना चाहिए !!
Friday, November 14, 2008
good friend
Log kehte hai ki itni dosti mat karo
Ki dost dil par sawar ho jaye
Hum kehte hain dosti itni karo ki
“Dushman” ko bhi tumse pyar ho jaye
Dosti ki raho mei kabhi akelapan na mile
Aye dost zindagi mei tumhe kabhi gum na mile
Dua karte hai hum khuda se
Tumhe jo bhi dost mile HUM se kum na mile
Har karz dosti ka ada karega kaun
Jab HUM hi nahi rahenge to dosti karega kaun
Ay khuda mere dosto ko salamat rakhna
Werna mere jeene ki dua karega kaun
Tum ne kab hi dekha hai meri ankho mei….
Ki us mei har pal tera hi intezar rehta hai…
Mai kisi aur ko kaise shamil karlu in sapno mei..
Is pe to sirf tera hi chehra sawar rehta hai…
Maana ki tu nahi mil sakti hai mujko…
Lekin fir bhi tujhko dil mei paane ka izehar rehta hai
Teri judai mei is tarah ansu tapakte hai
Jaise inme chupa hua koi samundar rehta hai
Mai ek pal bhi tumko juda nahi kar sakta apne wajood se
Mere tu khun ke har katrey mei hi shamil rehta hai
Bus ek bar tum mil jao meri zindagi mei…
Warna hamari saanso ka bhi kaha aitbar hai….
Ki us mei har pal tera hi intezar rehta hai…
Mai kisi aur ko kaise shamil karlu in sapno mei..
Is pe to sirf tera hi chehra sawar rehta hai…
Maana ki tu nahi mil sakti hai mujko…
Lekin fir bhi tujhko dil mei paane ka izehar rehta hai
Teri judai mei is tarah ansu tapakte hai
Jaise inme chupa hua koi samundar rehta hai
Mai ek pal bhi tumko juda nahi kar sakta apne wajood se
Mere tu khun ke har katrey mei hi shamil rehta hai
Bus ek bar tum mil jao meri zindagi mei…
Warna hamari saanso ka bhi kaha aitbar hai….
Saturday, November 8, 2008
देखता हूँ गगन, सुमन और समुंदर की तरुणाई को,
प्रति पल धीमी होती हुई इस समय की अरुणाई को।
दु:ख के रक्त कणोंसे लतपथ जीवन के अवसाद को,
या सुख के प्यालों से छके हुए मन के अंतर्नाद को।
शीत उष्ण और वर्षा पतझड़ ऋतुएं आती जाती हैं,
इस शरीर और मन के द्वारों पर दस्तक दे जाती हैं।
मिलना और बिछोह हृदय के तारो को सहलाता है,
इस जीवन का मायाजाल शरीर को बांधे जाता है।
पर मैं लिप्त नहीं, मैं भुक्त नहीं,
अतृप्त नहीं, आसक्त नहीं।
ये समग्र विलास है जग मेरा,
पर मैं करण नहीं मैं संज्ञा नहीं।
मैं तो केवल दृष्टा हूँ,
बिन आँखों के, बिन साँसों के।
देख रहा हूँ हो विस्मित,
जिस सृष्टि का मैं सृष्टा हूँ।
प्रति पल धीमी होती हुई इस समय की अरुणाई को।
दु:ख के रक्त कणोंसे लतपथ जीवन के अवसाद को,
या सुख के प्यालों से छके हुए मन के अंतर्नाद को।
शीत उष्ण और वर्षा पतझड़ ऋतुएं आती जाती हैं,
इस शरीर और मन के द्वारों पर दस्तक दे जाती हैं।
मिलना और बिछोह हृदय के तारो को सहलाता है,
इस जीवन का मायाजाल शरीर को बांधे जाता है।
पर मैं लिप्त नहीं, मैं भुक्त नहीं,
अतृप्त नहीं, आसक्त नहीं।
ये समग्र विलास है जग मेरा,
पर मैं करण नहीं मैं संज्ञा नहीं।
मैं तो केवल दृष्टा हूँ,
बिन आँखों के, बिन साँसों के।
देख रहा हूँ हो विस्मित,
जिस सृष्टि का मैं सृष्टा हूँ।
dard se hath na milate
DARD SE HAATH NA MILATE TO AUR KYA KARTE...
GUM KE AANSOO NA BAHATE TO AUR KYA KARTE....
USNE MAANGI THI HUMSE ROSHNI KI DUA....
HUM KHUD KO NA JALAATE TO AUR KYA KARTE
GUM KE AANSOO NA BAHATE TO AUR KYA KARTE....
USNE MAANGI THI HUMSE ROSHNI KI DUA....
HUM KHUD KO NA JALAATE TO AUR KYA KARTE
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